Tuesday, November 10, 2009

जी-हुजूरी

one more from my childhood collection :)

जब अलविदा हो हिंद से इन्साफ जन्नत को गए
मखलूक की इमदाद करने तीन बेटे रह गए
सबसे बड़े रिश्वत अली, मंझले सिफारिश खान हैं
छोटे खुशामद बेग हैं, जिनकी निराली शान है

हर बसर की कामयाबी अब इन्ही के हाथ है
दूर रहती सब मुसीबत जिन पर इनका हाथ है

गर्ज है मिलना कठिन, मिल जा सिफारिश खान से
कि क़त्ल के भी जुर्म में रिश्वत अली की जीत है

मुन्ना, खुशामद बेग को, गोद में ले पुचकार कर
जी-हुजूरी सीख ले फ़िर चाहे जो व्यापार कर

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