Monday, November 9, 2009

कलयुग

one of my favourite poems of school days...... read somewhere in a school magazine

हे प्रभो आनंदमय ! मुझको ये उपहार दीजिये
सिर्फ़ मैं जीवित रहूँ, और सबको मार दीजिये

भक्त हूँ मैं आपका, अर्ज़ी प्रभू ये लीजिये
और जितनी अर्ज़ियां हों, फाड़कर दे दीजिये
श्रीमती जी आपका चर्णाम्रत लेती रहें
चाय और सिगरेट पीने को मुझे देती रहें

पुष्प, चंदन और तुलसी, आप सब ले लीजिये
सौ-सौ रूपये के नोट, जितने हों मुझे दे दीजिये
और मेरा कौन है, सब कुछ मेरे आप हैं
आप मेरे बाप के भी, बाप के भी बाप हैं

मुझे अगले जनम में बेटा अपना बना लीजिये
या सेठजी की खात का , खटमल मुझे बना दीजिये
दे आशीष मुझे की, सौ वर्ष जीता रहूँ
दूसरों का ध्यान छोड़, अपनी सेवा करता रहूँ

एक झंडा, चार गुंडे, आठ मोटर दीजिये
मित्र सब ऐसे मिलें, जो बुद्धिमानी छोड़ दें
आँख जो मुझसे मिलाये, वो उसको फोड़ दें
मृत्यु को भी मार डालूँ, यह शक्तिदान कीजिये

हे प्रभो आनंद दाता! मुझको यह उपहार दीजिये
सिर्फ़ में जीवित रहूँ, और सबको मार दीजिये

Isnt it a wonderful wish?

1 comment:

Vijaya said...

The 3rd stanza is "D Best" :)

Good long list of wishes!

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